IBS एक प्रकार का डी.जी.बी.आई (डिसॉर्डर ऑफ़ गट-ब्रेन इंटरेक्शन)/फंक्शनल डायजेस्टिव समस्या है। यह एक सामान्य फंक्शनल डायजेस्टिव समस्या है जिसमें आंतें संवेदनशील हो जाती हैं और उनका कार्य असंतुलित हो जाता है जिससे कुछ लक्षण प्रकट होते हैं। इसी तरह, अन्य फंक्शनल डायजेस्टिव समस्याओं में आंतें नहीं बल्कि पाचनमार्ग के ऊपरी अंग जैसे अन्ननली, जठर संवेदनशील हो जाते हैं और उनकी कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है। और दर्द, जलन या ऐंठन, गले में गांठ या खराश, मुंह में कड़वा स्वाद या पेट में बहुत अधिक गैस जैसे लक्षण। जब ऐसे लक्षण दिखें और टेस्ट रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य आए तो चिंता छोड़ कर यह उपयोगी लेख पढ़ें।
डी.जी.बी.आई(डिसऑर्डर ऑफ गट ब्रेन इंटरेक्शन)/ फंक्शनल डायजेस्टिव समस्याएं पाचन तंत्र को प्रभावित करने वाली एक मेडिकल कंडीशन है, जहां मरीज़ों को भोजन और पाचन से संबंधित विभिन्न प्रकार की समस्याएं होती हैं, लेकिन किसी भी पाचन अंग में कोई बीमारी नहीं होती है। उनके एक या अधिक पाचन अंगों (अन्ननली, जठर, छोटी आंत, या बड़ी आंत) के कार्य में असंतुलन होने के कारण मरीज़ो को इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है । इसलिए जब जांच और परीक्षण करवाया जाता है तब रिपोर्ट्स में
पाया जाता है कि अन्ननली, जठर और आंत बिलकुल नॉर्मल हैं। यह अकेले या पाचन तंत्र या शरीर के अन्य तंत्र के किसी रोग के साथ हो सकता है। डी-जी-बी-आई(डिसऑर्डर ऑफ गट ब्रेन इंटरेक्शन) को आमतौर पर GERD/एसिड रिफ्लक्स/हायटस हर्निया और पित्ताशय में पथरी की समस्या के साथ देखा जाता है। ऐसी स्थितियों में GERD/हायटस हर्निया या पित्ताशय में पथरी के उपचार या सर्जरी के साथ-साथ डी.जी.बी.आई का उपचार आवश्यक है। तभी मरीजों को उनके लक्षणों में अधिकतम राहत मिलेगी।
आईबीएस(IBS) डी.जी.बी.आई (DGBI) का एक जाना-माना प्रकार है जो छोटी और बड़ी आंतों को प्रभावित करता है, जिससे पेट में दर्द, कब्ज या दस्त, बार-बार मल त्याग करने की इच्छा होना, अच्छे से पेट साफ न होना, या पेट में गड़गड़ाहट महसूस होने वाले लक्षण मिलते है। डी.जी.बी.आई (DGBI) के अन्य रूप हैं पोस्ट प्रांडियल ब्लोट सिंड्रोम (Post-prandial bloat syndrome), फंक्शनल हार्टबर्न (Functional heartburn), हाइपरसेंसिटिव इसोफैगस (Hypersensitive esophagus), फंक्शनल बेल्चिंग (Functional belching), और रुमिनेशन सिंड्रोम (Rumination syndrome) जो अन्ननली और जठर को प्रभावित करता है।इसलिए आपको डॉक्टर के कहे गए या फाइल में लिखे गए अलग -अलग नामों को पढ़कर उलझन में नहीं पड़ना चाहिए।
हमारा दिमाग और हमारा पूरा पाचन तंत्र हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में एक दूसरे के साथ निरंतर संपर्क में होता है। यह संपर्क आपकी नसों द्वारा दिए गए संकेत(नर्व सिग्नल) के साथ-साथ विभिन्न रसायनों, फाइटोकेमिकल्स और हार्मोन के स्राव के माध्यम से होता है। यह संपर्क दो तरफा होता है, यानि की संकेत आपके दिमाग से पाचन तंत्र और पाचन तंत्र से दिमाग तक जाते है। यदि इन संपर्कों में कोई गड़बड़ी या कमी होती है, तो यह मरीज़ में महसूस किए जाने वाले विभिन्न लक्षणों को जन्म दे सकती है।कभी-कभी यह लक्षण बहुत मामूली होते हैं, जिनसे शरीर के कार्य में ना ही गड़बड़ी होती है, और ना ही मरीज़ को कोई परेशानी होती है। और कभी-कभी, यह पाचन तंत्र से संबंधित लक्षण आपके शरीर के कामकाज में गड़बड़ी पैदा कर सकते है, आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते है, या मरीज़ को परेशान करने वाले लक्षण शुरू कर सकते है।
आइए इसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं। इस संपर्क का एक मार्ग है, जहाँ मन और दिमाग से सूचना पाचन तंत्र तक जाती है । जैसे कि, जब हम खाने की योजना बनाते हैं, या जब हम अपने पसंद के भोजन के बारे में सोचते हैं, तो हमारे दिमाग से सूचना हमारे पाचन तंत्र तक जाती हैं, जिससे हमारे मुंह में लार आती है और पाचन की तैयारी के लिए आंत में पाचक रस का स्राव होता है।
इस तरह के संकेत खाना निगलने, पाचन और मल त्याग से संबंधित प्रत्येक पाचन क्रिया के लिए भेजे जाते हैं। लेकिन कुछ परिस्थितियों में, सूचना भेजने की यह प्रणाली(प्रोग्रामिंग) असंतुलित हो जाती है, जिस वजह से गलत संकेत भेजे जाते है या संकेत अनुचित समय पर, या अनुचित मात्रा में भेजे जाते है। यह गलत सूचना कभी-कभी आपके जठर या बड़ी आंत की दीवार को पर्याप्त रूप से शिथिल(रिलेक्स )नहीं होने देती है जिसे एकोमोडेशन रिफ्लेक्स का ख़राब होना कहे सकते है। एकोमोडेशन रिफ्लेक्स के ख़राब होने से आपके जठर या आंत की दीवार उचित प्रमाण में रिलेक्स नहीं होती है और खुराक और मल के लिए पर्याप्त जगह नहीं बनने देती है। जिससे आपको पेट में खिंचाव या फूला हुआ महसूस होता है या गैस बनने का एहसास होता है। यानि काफी बार जब आपको ऐसा लगता की बहुत अधिक गैस बन रही है, तब असल में यह हो सकता है कि इतनी अधिक गैस नहीं बनती हो, बल्कि आपके जठर और बड़ी आंत के शिथिल न होने या तना हुआ रहने की वजह से आपको यह महसूस हो सकता है। जब इस तरह मन से आंतों तक आते संकेत असंतुलित हो जाते है तब वे विभिन्न लक्षण पैदा कर सकते हैं जैसे डकार आना, जी मचलाना, पेट में गड़गड़ाहट, पेट में दर्द, धड़कने बढ़ जाना या सांस लेने में कठिनाई होना।
इसी तरह, संपर्क का दूसरा मार्ग है, जिसमें पेट से दिमाग की ओर संदेश जाता है। उदाहरण के लिए जब भी हमारा पेट खाली होता है, तो दिमाग तक संकेत जाता है कि हमें भूख लगी है। जब हम पर्याप्त मात्रा में खा लेते हैं तो दिमाग को सूचना मिलती है कि हमारा पेट भर चुका है। जब हमारा रेक्टम (बड़ी आंत का अंतिम भाग) मल से भरा होता है, तो यह संकेत हमारे दिमाग तक जाता है, जो हमें सूचित करता हैं कि हमें मलत्याग करने की आवश्यकता है। लेकिन कभी-कभी,आपके आंत, जठर, अन्ननली की अंदर की परत कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील हो जाती है। इस स्थिति में भले ही अन्ननली में, जठर में,और आंत में कोई इंफेक्शन, सूजन, अल्सर न हो, या एसिड ऊपर अन्ननली में ना आता हो, तब भी आपको पेट में दर्द, जलन या खिंचाव महसूस हो सकता है, गले में कुछ अटका हुआ या खराश महसूस हो सकती है, स्वाद में बदलाव महसूस हो सकता है, लगातार या बार-बार मल त्याग करने की इच्छा हो सकती है, या पेट में बहुत अधिक गैस बनना महसूस हो सकता है। जब आपको लंबे समय से पाचन संबंधित समस्या हो या कोई बड़ी पाचन संबंधित सर्जरी हुई हो, तो यह सब थोड़ी बहुत मात्रा में सामान्य तौर पर होता है।
क्या आपने कभी किसी वायरल बीमारी के दौरान या कुछ दवाओं की वजह से मुँह में कड़वापन का अनुभव किया है ? यह इसलिए होता है क्योंकि बीमारी और दवाई की वजह से आपके स्वाद लेने की अनुभूति (टेस्ट बड सेंसेशंस) बदल जाती है। इसी तरह कई कारणों से आपके पाचन तंत्र के अंग जैसे कि अन्ननली, जठर, छोटी आंत और रेक्टम (बड़ी आंत का अंतिम भाग) संवेदनशील हो जाते है। और इससे जलन, दर्द, सूजन, पेट फूला हुआ या जल्दी पेट भर जाना, पेट अच्छे से साफ़ नहीं होना और बार-बार मल त्याग करने की इच्छा जैसे लक्षण हो सकते हैं। और रिपोर्ट्स में पाया जाता है कि अन्ननली, जठर और आंत बिलकुल नॉर्मल हैं। यह रिपोर्ट्स नॉर्मल आते ही मरीज़ के मन में और उलझन पैदा होती है, कि उन्हें यह तकलीफ क्यूँ हो रही है और यह उनकी परेशानी और तनाव को बढ़ाता है। आशा है कि इस स्पष्टी करण से आपको समझने में आसानी होगी कि रिपोर्ट्स नॉर्मल होने के बावजूद भी आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
यह सब किसी बीमारी के बिना, यानि की बिना कोई इंफेक्शन, ट्यूमर, बिना अन्ननली में एसिड आए, गले में सचमुच कुछ न अटकते हुए भी, खाना नीचे अन्ननली में सामान्य रूप से जाते हुए भी, पाचन सही से होते हुए भी, आंतो में ज़्यादा गैस न होते हुए भी और सच में कोई दस्त न होते हुए भी हो सकता है। यह संवेदनशीलता कई कारणों से, जैसे की पिछले पाचन रोग, लंबे समय से चल रही दवाइयों, अन्य बड़ी बीमारियों, तीव्र तनावपूर्ण या भावनात्मक स्थितियों और सामान्य रूप से अस्वस्थ जीवन शैली की वजह से हो सकती है। यह सब धूम्रपान, तंबाकू का सेवन, अल्कोहोल का सेवन, या व्यसनयुक्त दवाओं जैसी आदतों के कारण भी हो सकता है।
बेशक कई स्थितियों में, हमें मरीज़ की पूरी तरह से जांच करने की आवश्यकता होती है। जिससे यह पुष्टि की जा सके कि उन्हें पाचन संबंधित अन्य बीमारी है या नहीं जिसके लिए अलग से इलाज की ज़रुरत हो। मरीजों को उनकी समस्याओं के आधार पर एंडोस्कोपी(Endoscopy), कोलोनोस्कोपी(Colonoscopy), इसोफेजियल मैनोमेट्री (Esophageal Manometry), 24 घंटे पीएच इम्पीडेंस स्टडी (24 Hour pH Impedance study), अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) और/या सीटी स्कैन (CT Scan) से गुजरना पड़ सकता है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, फंक्शनल समस्याएं एक बीमारी के साथ ओवरलैप हो सकती हैं जहां केवल बीमारी का इलाज करने से अच्छे परिणाम नहीं मिल सकते। ऐसी स्थितियों में उस बीमारी के इलाज के साथ-साथ फंक्शनल डायजेस्टिव समस्याओं का इलाज भी आवश्यक है, ताकि स्थायी रूप से और लंबे समय के लिए लक्षणों का समाधान हो सके और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति हो। अच्छी बात यह है कि इन फंक्शनल समस्याओं का इलाज साइकोमॉड्युलेटरी दवाओं, स्ट्रेस मेनेजमेंट और उचित आहार द्ववारा आसानी से किया जा सकता है। इस तरह की समस्याओं से जब मरीज़ लंबे समय से पीड़ित होता है, या वह अपनी समस्या की प्रकृति ठीक से नहीं समझ पाता, या तो इसका उचित इलाज नहीं किया जाता है तब अंत में यह उसके तनाव और चिंता का कारण बनता हैं। इस समस्या से होने वाला तनाव और चिंता मरीज़ के लक्षणों को और बढ़ा देता है, और मरीज़ इस चक्रव्यूह में फसा रहता है। इस चक्रव्यूह से बहार आने के लिए हर मुमकीन प्रयास करना चाहिए, जिसके लिए डायजेस्टिव बीमारी के साथ फंक्शनल डायजेस्टिव समस्या और तनाव (स्ट्रेस, एंग्जाइटी ) का इलाज एक साथ करना ज़रूरी है।
डी.जी.बी.आई (DGBI)/फंक्शनल डायजेस्टिव समस्याओं वाले मरीज़ आमतौर पर कई अन्य लक्षणों और समस्याओं से पीड़ित होते हैं, जिन्हें पाचन लक्षण नहीं कहा जा सकता है। लेकिन यह लक्षण, पाचनमार्ग के कामकाज में गड़बड़ी से संबंधित या उससे जुड़े हुए होते हैं। इनमें से ज़्यादातर मरीज़ इस बात से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं, क्योंकि वे अच्छी तरह से समझते हैं कि यह समस्याएं तब होती हैं जब उनका पेट अस्वस्थ/ख़राब हो जाता है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारा पाचनमार्ग शरीर के अन्य सिस्टम/भागों से जुड़ा हुआ है। जैसा कि हमारा पारंपरिक ज्ञान कहता है, और विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि हमारा पाचनमार्ग हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य का केंद्र होता है। जब हमारे पाचनमार्ग में गड़बड़ी होती है तब हमारा हार्मोनल सिस्टम, रोगप्रतिकारक शक्ति भी असंतुलित हो जाती है और यह हमारे दिमाग और मन के कामकाज को भी प्रभावित करता है। और जब हमारा पाचनमार्ग संतुलित हो जाता है तब धीरे-धीरे इन सभी लक्षणों में भी सुधार होता है।
डी.जी.बी.आई (DGBI), फंक्शनल पाचन समस्याओं,और कभी-कभी एसिड रिफ्लक्स के मरीज़ो में आमतौर पर देखे जाने वाले बिन-पाचन लक्षण या समस्याएं हैं: सिरदर्द या सिर का भारीपन, उँघाई /चक्कर आना, थकान, कमजोरी, पूरे शरीर में दर्द, पूरे शरीर में जलन, तलवों में जलन और पैरों में दर्द, नींद में खलल, सोने के बाद भी तरोताजा महसूस नहीं होना, एलर्जी और त्वचा संबंधी समस्याएं।
हमारा ध्येय लक्षणों को नियंत्रित करके और सामान्य आहार, जीवन और प्रवृतियों को सुधारने का होना चाहिए। लक्षण बार-बार न हो, और जब हो तो उनकी तीव्रता और गंभीरता कम हो ऐसा होना चाहिए। ध्येय यह भी होना चाहिए कि, आप सीखे की लक्षण होने पर आप खुद आसानी से उनका नियंत्रण कर पाए और अपने जीवनशैली को प्रभावित किए बिना उन्हें नियंत्रण में रख पाए।
सही समझ के साथ, इलाज और मेडिकल टीम की मदद से, ऐसे मरीज़ो के लिए एक सामान्य आहार, प्रवृतियां और जीवन हमेशा संभव होता है।