मेदस्विता से सबंधित अन्य रोगो जीवन की गुणवत्ता को खराब करता है। लेकिन एक बुजुर्ग व्यक्ति में, यह परिस्थिति ज्यादा तकलीफ देनेवाली होती है। कभी-कभी दिन-प्रतिदिन के कार्यों को अपनेआप करना अत्यंत कठिन हो जाता है। खूद की देखभाल के लिए भी मदद की ज़रूरत रहती है। कई बार सिर्फ उम्र के कारण बेरियाट्रिक सर्जरी के बारे में सोचा भी नहीं जाता है। वास्तव में, यह वे लोग हैं जिनको इसका अधिकतम लाभ होता है और यदि सभी उचित सावधानियों के साथ किया जाए तो इसे काफी सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मोटापा बहुत सारी समस्याएं लेकर आता है। ये समस्याएं स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं, घूमने-फिरने में समस्याएं, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं हैं। बुजुर्गो में ये सभी समस्याएं, विशेष रूप से स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं और घूमने-फिरने की समस्याएं बहुत गंभीर हैं।
युवा मेदस्वी व्यक्तियों में मेदस्विता के कारण विभिन्न अंगों को होने वाले नुकसान को सहन करने की क्षमता वृद्ध मेदस्वी व्यक्तियों की तुलना में अधिक होती है। इसीलिए, आपने बहुत ऐसे युवा मेदस्वी लोगों को देखा होगा, जो अपना जीवन अच्छी तरह से जी सकते हैं और अपने वजन के बावजूद उन्हें ज्यादा कोई स्वास्थ्य संबधित समस्याएं नहीं होती हैं। ज्यादातर समय ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उम्र उनका सकारात्मक पहलू है। लेकिन युवा लोगों में भी मेदस्विता शरीर के विभिन्न तंत्रो को नुकसान पहुंचा रहा है, जो बाहर से दिखाई नहीं देता है। जब नुकसान एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाता है तो यह विभिन्न समस्याओं के रूप में स्पष्ट दीखता है। नुकसान सहने की हमारे शरीर की क्षमता इतनी अधिक होती है कि जब तक नुकसान 70-80% नहीं हो जाता तब तक समस्याएं सामने नहीं आतीं। यह शरीर के अधिकांश हिस्सों पर लागू होता है, चाहे वह लिवर, हार्ट, किडनी या आपके घुटने हों।
दूसरी ओर, बुजुर्ग मेदस्वी व्यक्तियों में यह समस्याएं युवा मेदस्वी व्यक्तिओ की तुलना में कम वजन के साथ भी अधिक होती है।
उनके लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या उनके घुटने, कूल्हे और पीठ दर्द की समस्या है। जोड़ और हड्डी की समस्याएं कई दैनिक गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से करना मुश्किल बना देती हैं। यह समस्या उन बुजुर्ग महिलाओं के लिए और भी अधिक है जो मेदस्विता से पीड़ित हैं। समस्या तब और बढ़ जाती है जब वे गिर जाते हैं और उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं (फ्रैक्चर हो जाता है)। सर्जरी भी जोखिम भरी हो जाती है और रिकवरी धीमी हो जाती है। सर्जरी के बाद आराम करने से वजन और बढ़ता है और इसी कारण जोड़ों का दर्द भी बढ़ जाता है। यह सब एक दुष्चक्र पैदा करता है, जिसे तोड़ना मुश्किल है। यही बात घुटने और पीठ की समस्याओं के लिए वैकल्पिक सर्जरी पर भी लागू होती है। यही कारण है कि कई आर्थोपेडिक सर्जन घुटने या पीठ की सर्जरी से पहले बेरियाट्रिक सर्जरी का सुझाव देते है। कई बार तो वजन कम होने से घुटने या पीठ की सर्जरी की जरूरत ही नहीं पड़ती। और अगर अभी भी सर्जरी की जरूरत महसूस होती है, तो परिणाम और रिकवरी बहुत बेहतर होती है।
कई बुजुर्ग महिला मरीजों में यूरिनरी इनकंटिनन्स (ऐसी स्थिति जो उनके लिए शौचालय तक पहुंचने तक पेशाब को रोकना मुश्किल बना देती है) जैसी समस्या भी देखने को मिलती है, जो उनकी व्यक्तिगत स्वच्छता को प्रभावित करती है। इससे बार-बार यूरिन में इंफेक्शन हो जाता है और एंटीबायोटिक दवाओं के लंबे कोर्स को बार-बार दोहराने की आवश्यकता हो सकती है। अच्छी स्वच्छता बनाए रखने की असमर्थता से लगातार दुर्गंध भी आती है। यह व्यक्ति की गरिमा को प्रभावित करता है और व्यक्ति बाहर जाने और सामाजिक रूप से सक्रिय होने से डरता है।
घूमने-फिरने में समस्याओं के आलावा, अन्य समस्याएं जैसे की डायाबिटीस, हाईब्लडप्रेसर, सांस लेने में समस्या, और वेरिकोस वेइन जैसी समस्याए भी बहुत आम है। वृद्ध लोगों में ये सभी समस्याएं वैसे भी आम हैं, और अगर वे मेदस्वी हैं तो ये सभी समस्याएं बदतर और नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। दवाओं के अधिक डोज़ लेने के बावजूद शुगर और ब्लडप्रेशर उच्च रहता है। जब ये समस्याए ठीक से नियंत्रित नही की जाती है, तो वे कई और बड़ी समस्याओं को जन्म देती है जैसे की हार्ट अटेक, किडनी और लिवर का फेईल होना। यह सब सामान्य वजनवाले बुजुर्ग की तुलना में मेदस्विता संबंधित अन्य रोगो से पीड़ित बुजुर्गो में अधिक देखा जाता है।
बुढ़ापा शांतिपूर्ण और ख़ुशी से भरा होना चाहिए, लेकिन उपरोक्त सभी समस्याएं बुढ़ापे को लगातार संघर्ष भरा बनाती है। यह संघर्ष सिर्फ मरीजों के लिए ही नहीं है, इनके परिवार के लिए भी यह संघर्ष है। परिवार के सदस्य उनकी तमाम कोशिशों और देखभाल के बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं कर पा रहे है। वजन कम होने से इस स्थिति में भारी बदलाव आता है। पर्याप्त वजन कम होने के साथ ही, आधी समस्याएं गायब हो जाती हैं और बाकी की समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है।
अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि 65 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 30-35% बुजुर्ग मेदस्वी हैं। हमारे पास आधिकारिक तौर पर भारतीय डाटा नहीं है, लेकिन हमारे पास अनुमानित 15-20% बुजुर्ग लोग हैं जो मेदस्वी हैं और यह संख्या समय के साथ तेजी से बढ़ रही है। बढ़ते बोज के साथ, अब समय आ गया है की हम इस बढ़ती हुई समस्या के प्रति सतर्क हों जाये। इन समस्याओं को प्रारंभिक अवस्था में रोकने के लिए कदम उठाने की सख्त जरूरत है। साथ में हमें यह भी जानना जरूरी है की एक बार व्यक्ति का वजन बढ़ जाये इसके बाद भी, बेरियाट्रिक (मेदस्विता की या वजन कम करने की) सर्जरी से स्थायी रूप से वजन कम करके अच्छे परिणाम प्राप्त किया जा सकता है।
बेरियाट्रिक सर्जरी की आवश्यकता सभी मेदस्वी व्यक्तिओं को नहीं है। लेकिन कई मेदस्वी मरीजों के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी से बेहतर कोई विकल्प नहीं बचता है।जोड़ों के दर्द, कमजोर स्नायु, अशक्ति के कारण वे अपने खुद के वजन को भी नहीं झेल पाते है। वजन कम करने के लिए सख्त कसरत करना उनके लिए लगभग नामुमकिन है और सिर्फ डाइटिंग करने से काम नहीं चलता। अगर बेरियाट्रिक सर्जरी समय पर नहीं की जाती है, तो जल्द ही उनका वजन बढ़ जाता है और वे बिस्तर या कुर्सी से बंधे हो जाते हैं। और फिर समस्याएं कई गुना बढ़ जाती हैं।
इसके अतिरिक्त, मेदस्विता के कारण उपरोक्त कई आरोग्य संबंधित समस्याओं का उपचार भी अधिक कठिन होता है। यह डायाबिटीस, हाइब्लडप्रेसर, वेरिकोस वेइन, अल्सर के उपचार और घुटने की सर्जरी(knee replacement) और लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए भी लागू होता है। और इसलिए कई बार ऐसी सर्जरी से पहले बेरियाट्रिक सर्जरी की सलाह दी जाती है। उदाहरण के तौर पे, मेदस्विता के मामले में घुटने की सर्जरी या किडनी या लीवर ट्रांसप्लांट से पहले बेरियाट्रिक सर्जरी की सलाह दी जाती है। वजन कम किए बिना, इन सर्जरी के परिणाम अच्छे नहीं होंगे और इसलिए इसकी आवश्यकता है।
बेरियाट्रिक सर्जरी से वजन स्थायी रूप से कम होने की वजह से मरीजों को होनेवाली ज्यादातर समस्याओं में सुधार होता है। इसलिए उनकी सभी समस्याओं का इलाज आसान हो जाता है। रोग नियंत्रण में रहते हैं और बड़ी समस्याओं से बचाव होता है।
जी हां, यह सच है कि बेरियाट्रिक सर्जरी एक बड़ी सर्जरी है। सभी बड़ी सर्जरी की तरह, बेरियाट्रिक सर्जरी के भी अपने जोखिम हैं। बुजुर्ग मरीज और ऐसे मरीज जिनको अन्य शारीरिक समस्याए भी है, उनमें यह जोखिम और भी बढ़ जाता है। लेकिन यह भी सच है कि जब उचित सावधानियों के साथ और सही तरीके से बेरियाट्रिक सर्जरी की जाती है, तो इन जोखिमों को काफी कम किया जा सकता है। बुजुर्ग मरीजों में बेरियाट्रिक सर्जरी, सामान्यतः बहुत अच्छे परिणाम के साथ की जा रही है। और इस सर्जरी के लाभ इसके जोखिमों से कहीं अधिक हैं।
इसके अलावा, चलना-फिरना काफी बढ़ जाता है और घुटने और पीठ दर्द की समस्याओं में काफी सुधार होता है। मरीज के लिए स्वयं की देखभाल करना संभव हो जाता है।
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