हर डायाबिटीस से पीड़ित व्यक्ति अपनी रोजाना दवाइयों और इंजेक्शन से छुटकारा पाने की इच्छा रखते है। हालांकि यह सभी के लिए संभव नहीं हो सकता है, किन्तु कुछ डायाबिटीस के मरीजों में सर्जरी की मदद से यह सम्भव हैं। उनमें से कुछ पूरी तरह से दवाइयों से छुटकारा पा सकते हैं, जबकि कुछ को दवाइयों की आवश्यकता होने पर भी इन्स्युलिन से मुक्ति मिल सकती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है की, दवाइयां और इन्स्युलिन कम होने के बावजुद ब्लड सुगर पर ज्यादा अच्छी तरह से कंट्रोल पाया जा सकता है। हर चीज की तरह, यहां भी “शर्ते लागू होती हैं”। विस्तृत रूप से समझने के लिए लेख पढ़ें और जानें कि आपके लिए यह कितना उपयोगी है।
ठीक हो जाना या मिट जाना, बहुत भारी शब्द है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसका अर्थ अलग अलग हो सकता है। सरलता से कहु तो, आपके लिए ठीक होने का मतलब दवाइओ से छुटकारा पाना, और फिर भी स्वस्थ ब्लड सुगर का स्तर बनाए रखना है, तो हाँ यह सम्भव है। दवाइओ से सम्पूर्ण छुटकारा कुछ चुने हुए मरीजों में मुमकिन है। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि हम Type II डायाबिटीस के बारे में बात कर रहे हैं। Type I डायाबिटीस एक पूरी तरह से अलग बीमारी है, और हम यहां इसके बारे में बात नहीं कर रहे हैं।
कुछ मरीज जिनको हाल ही में डायाबिटीस का पता चला हो, जिनकी जीवनशैली अनुचित हो, अधिक वजन हो, जिनके फेमिली में डायाबिटीस हेरिडिटरी में (आनुवांशिक तौर से) ना हो और जिनके पेन्क्रियास का अन्तःस्त्रावी कार्य अच्छा हो, ऐसे सभी मरीजों में बस वजन कम करने और एक स्वस्थ जीवनशैली का सख्ती से पालन करने से डायाबिटीस ठीक हो सकता है। इस श्रेणी में आने वाले किसी व्यक्ति को इसे पढ़ने के बाद इलाज बंद नहीं करना चाहिए। दवाइयां बंध करना, डॉक्टर के मार्गदर्शन के अनुसार और साथ में ब्लड सुगर की योग्य निगरानी के साथ होना चाहिए। बहुत सारे डायाबिटीस के मरीज अपने आप ऐसा करते हैं, और ब्लड सुगर के स्तर की जांच नहीं करते हैं और मानते हैं कि जीवनशैली के बदलाव उनके डायाबिटीस को ठीक कर देगा। लेकिन सभी मरीजो मे ऐसे दवाइयां बंध नहीं हो सकती है और आपको इसे अपने डॉक्टर की सलाह के बिना बंध नहीं करना चाहिए।
डायबिटिस के कुछ मरीज ऐसे है की जिसको मोटापा है और कुछ सालों से उन्हें डायाबिटीस है, वे बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद दवाइयों को पूरी तरह बंध करने की उम्मीद रख सकते है। आप एक बेरियाट्रिक सर्जन से सलाह ले कर यह जान सकते है की आप के लिए ऑपरेशन से दवाइयां बंध होने की संभावना कितनी है। बेरिएट्रिक सर्जरी के बाद डायाबिटीस में सुधार आपकी उम्र, बीएमआई (BMI), पेन्क्रियास के अंतःस्रावी कार्य (pancreatic endocrine function) और हेरिडिटरी(आनुवंशिक) फेक्टर पर निर्भर करेगा।
हालांकि सर्जरी इलाज का एक अच्छा विकल्प है, लेकिन यह सभी के लिए एक आदर्श विकल्प नहीं है। चुने हुए कुछ मरीजों को इस विकल्प पर विचार करना चाहिए। यदि आप नीचे दी गई श्रेणी में आते हैं, तो आपको बेरियाट्रिक या मेटाबोलिक सर्जरी के बारे में विस्तृत जानकारी खोजनी चाहिए।
अगर आपको मोटापा हो, मतलब की आपका BMI 32.5 से अधिक हो और अन्य मोटापे के संबंधित बीमारियाँ (डायाबिटीस और अन्य) हो तो आप के लिए सर्जरी उचित है। कई मरीजों जिनका BMI 37.5 हो, उनको डायाबिटीस या कोई अन्य मोटापा-संबंधी बीमारी न होने के बावजूद इस सर्जरी की सलाह दी जाती है।
एक मोरबिड ओबेसिटी से पीड़ित व्यक्ति, जिसका BMI 32.5 से अधिक है और दवाइयाँ लेने पर भी डायाबिटीस कंट्रोल में नहीं है, ऐसे व्यक्ति को बेरियाट्रिक सर्जरी के विकल्प बारे में दृढ़ता से सोचने की जरूरत है। अनियंत्रित ब्लड सुगर( Poor glycemic control) आपके शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को नुकसान करता है। यह अभी दिखाई न दे रहा हो, परन्तु इससे ऑर्गन फेल्योर (अंगो का काम करना बंध होने) की संभावना है। इससे हार्ट एटेक, किडनी फेल्योर ,लिवर डेमेज, दृश्टि को हानि, या पाँव में गेंगरीन हो सकता है।
अपने ग्लाइसेमिक या डायाबिटीस कन्ट्रोल को जानने के लिए, आपको अपने फास्टिंग (भूखे पेट) और पोस्ट-मिल (भोजन के बाद) के ब्लड सुगर के स्तर और साथ ही HbA1c के स्तर पर नजर रखनी चाहिए। HbA1c , यह पिछले तीन महीनों के ब्लड सुगर कंट्रोल के औसत को दर्शाता है। आदर्श रूप से, अच्छे डायबिटीस के कंट्रोल के लिए इसे 7 से नीचे रखा जाना चाहिए। और अगर यह लगातार 8 से अधिक रहता है तो यह एक खराब डायाबिटीस कंट्रोल का संकेत देता है।
डायाबिटीस के ऐसे मरीज जिसको इन्स्युलिन इंजेक्शन लेने के बावजूद डायाबिटीस कंट्रोल में न हो, भले ही उनका BMI 27.5-32.5 के बिच में हो, फिर भी उन्हें सर्जरी पर विचार करना चाहिए। मुख्य रूप से ऐसी सर्जरी डायाबिटीस कंट्रोल के लिए की जाती है, नहीं की वजन घटाने के लिए। इसी सर्जरी को मेटाबोलिक सर्जरी कहा जाता है।
डायाबिटीस की अवधि जितनी कम हो, उतनी अधिक संभावना होती है कि सर्जरी के बाद आप की दवाइयां सम्पूर्ण रूप से बंध हो सकती हैं। विशेष रूप से मोटापे के साथ, ऐसे मरीज़ों में इन्स्युलिन के प्रति कम होती संवेदनशीलता(Decreased Insulin Sensitivity), उनके सुगर कंट्रोल न होने का कारण है। इस स्थिति में पेन्क्रियास की इन्स्युलिन बनानेकी क्षमता ज्यादातर अच्छी है। और अगर हम जल्दी बेरियाट्रिक सर्जरी करते हैं, तो हम पेन्क्रियास पर, समय के साथ होने वाले अपरिवर्तनीय नुकशान को रोक सकते हैं।
दवाइयों से न कंट्रोल होता डायाबिटीस और इन्स्युलिन की जरूरत, पेन्क्रियास में बीटा सेल की मात्रा कम होने का संकेत है। निश्चित रूप से, ऐसे मरीजों को भी सर्जरी से फायदा होने की संभावना है, लेकिन दवाइयों से सम्पूर्ण छुटकारा मिलने की संभावना कम है। सर्जरी के बाद सिर्फ दवाइओ से, इन्स्युलिन के बिना, सुगर पर बहेतर कंट्रोल पा सकते है। और ऐसे मरीज जिसकी इन्स्युलिन की जरूरत ज्यादा है और इन्स्युलिन लेने के बावजुद सुगर कंट्रोल में नहीं रहता है, ऐसे मरीजों में सर्जरी से इन्स्युलिन की जरूरत कम हो सकती है और इसके साथ सुगर कंट्रोल भी अच्छी तरह से हो सकता है।
हालांकि ऐसा लगता है कि ऐसे मरीजों में सर्जरी कम फायदेमंद है। लेकिन, वास्तव में दवाइओ से सम्पूर्ण छुटकारा ना मिलने के बावजूद, यह ऐसे मरीज है जिन्हें सर्जरी का अधिकतम लाभ होता है। ऐसे मरीजों में, हम सुगर कंट्रोल न होने की वजह से होने वाले मेजर ऑर्गन फेल्योर (जैसे की हार्ट अटेक,लिवर फेल्योर,किडनी फेल्योर) को रोक सकते हैं। ऐसे मरीजों में, ओपरेसन के जोखिम की तुलना में इसके फायदे अधिक होते है।
ये ऐसे फेक्टर्स है की जिससे समय के चलते आपके पेन्क्रियास के बीटा सेल्स को नुकशान होने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसे मरीजों को सर्जरी से लाभ होते हुवे भी, इन फेक्टर्स की वजह से समय के साथ लाभ में कमी आ सकती है।
इस के बावजुद, सिर्फ मेडिकल थेरापी के परिणामो की तुलना में सुगर कंट्रोल तथा ऑर्गन फेल्योर को टालने के बारे में सर्जरी के परिणाम बहेतर है।
C peptide लेवल पैंक्रियाटिक रिज़र्व को दर्शाता है। कई बार सुगर दे कर बीटा सेल्स को सी पेप्टाइड बनाने के लिए उत्तेजित करके, सी पेप्टाइड लेवल में होते बढ़ावे को देखा जाता है। इस परीक्षण से आपके डॉक्टर डायाबिटीस के कंट्रोल के बारे में सर्जरी के परिणाम का अंदाज़ा लगा सकते है।
तकनीकी रूप से, बेरियाट्रिक और मेटाबोलिक सर्जरी काफी समान है। मरीज की प्रोफ़ाइल तथा जरूरत के अनुसार कुछ बदलाव किए जाते है। दोनों जठर और आतों पर की जाने वाली लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है। दोनों की हॉर्मोन और मेटाबोलिज़म पर गहरी असर है।
बेरियाट्रिक सर्जरी रोगग्रस्त मोटापे से पीड़ित मरीज में वजन कम करने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ की जाती है। फिर भी, इससे डायाबिटीस में भी सुधार होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है की वजन कम करने का अंतिम लक्ष्य, मोटापे से जुड़े अन्य रोगो में सुधार लाना ही है।
दूसरी और, मेटाबोलिक सर्जरी मोटापा ना हो ऐसे डायाबिटीस के मरीज में, डायाबिटीस में सुधार के प्राथमिक लक्ष्य के साथ की जाती है। कई बार तकनीकी रूप से सर्जरी समान होती है, परंतु सर्जरी के प्राथमिक लक्ष्य के आधार पर शब्द का उपयोग किया जाता है। कई बार डायाबिटीस के कंट्रोल को बहेतर बनाने और कुछ कॉम्प्लिकेशन(जटिलता) को टालने के लिए सर्जरी में छोटे-मोटे बदलाव किए जाते है।
सबसे पहले, में आंतो के बारे में कहेना चाहूंगा की आंत अपने आप में एक बड़ा हॉर्मोन बनाने वाला अंग (एंडोक्राइन ऑर्गन) है। बड़ी संख्या में हॉर्मोन्स तथा पेप्टाइड अणु (मोलेक्युल्स ) आंतो में बनते(सीक्रिट होते) है। ये हॉर्मोन्स और मोलेक्युल्स ब्लड सुगर कंट्रोल, फेट के पाचन और शरीर के मेटाबोलिज़म जैसे कई शारीरिक कार्यो को नियंत्रित करते है।
ब्लड सुगर लेवल, पेन्क्रियास में से बनने वाले इन्स्युलिन के आलावा भी कई सारे ओर हॉर्मोन्स तथा मेटाबोलाइट्स से प्रभावित होता है। यहाँ तक की, पेन्क्रियास का अपना तथा इन्स्युलिन बनाने वाले बीटा सेल्स का स्वास्थ्य का ध्यान भी आतों की दीवाल में से बनते कई मोलेक्युल्स के द्वारा रखा जाता है। इस तरह, हमारे आंतों का स्वास्थ्य, हमारा आहार तथा हमारे आंतो के बेक्टेरिया के स्वास्थ्य की हमारे ब्लड सुगर लेवल तथा हमारे समग्र स्वास्थ्य पर गहरी असर होती है।
बेरियाट्रिक सर्जरी के दौरान आंतो में किए गए बदलाव के कारण आंतो में बनते विभिन्न मोलेक्युल्स में भी बदलाव आता है, जिसकी आगे चल कर इन्स्युलिन के स्त्राव पर सकारात्मक असर होती है।
सबसे पहले, बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद भोजन ड्यूओडिनम (duodenum ), जो पेन्क्रियास के नजदीक वाला आंत का प्रारम्भिक हिस्सा है, उसे बायपास करके आगे निकल जाता है। इस बदलाव से पेन्क्रियास से इन्स्युलिन का स्त्राव बढ़ता है, और ग्लुकागोन का स्त्राव कम होता है। हॉर्मोन ग्लुकागोन, इन्स्युलिन से बिलकुल विपरीत तरीके से कार्य करता है। और इसीलिए इसका कम स्त्राव ब्लड सुगर लेवल को सुधारने में मदद करता है। कुल मिलाकर, इन बदलावों के कारण इस सर्जरी के तुरंत बाद डायबिटीस में सुधार देखा जाता है।
दूसरा, सर्जरी के बाद भोजन आंतो के अंतिम हिस्से में जल्दी पहुंचता है। भोजन का छोटे आंतो के अंतिम भाग से जल्दी सम्पर्क होने से कुछ हॉर्मोन्स तथा मेटाबोलाइट्स के स्त्राव में बदलाव होता है। हालांकि यह बहुत सैद्धांतिक है, परन्तु जो जानना चाहते है उनके लिए, ये मोलेक्युल्स के नाम GLP 1 तथा Peptide yy है, जिनका स्त्राव सर्जरी के बाद बढ़ता है। दोनों पेन्क्रियास से इन्स्युलिन के उत्पादन तथा स्त्राव पर सकारात्मक असर करते है। इतना ही नहीं, वे पेन्क्रियास के नए बीटा सेल के अस्तित्व और विकास में भी सुधार लाते है। ये बीटा सेल वही है जो इन्स्युलिन बनाते है। डायाबिटीस टाइप II के मरीजों में ये बीटा सेल्स जल्दी से मर जाते है, और समय के साथ इनकी संख्या कम होती जाती है।
टाइप II डायाबिटीस में, इन्स्युलिन का कम स्त्राव होना ही एकमात्र समस्या नहीं है। जो इन्स्युलिन बनता भी है इसकी असर कम होती है। लिवर और स्नायु के कोष ब्लड में से सुगर को सोखने के लिए ज्यादा इन्स्युलिन का उपयोग करते है। और इस अप्रभाविता (इनइफेक्टिवनेस) को रिड्यूस इन्स्युलिन सेन्सिटिविटी कहते है। यह रिड्यूस इन्स्युलिन सेन्सिटिविटी, मोटापे के मरीजों में देखे जाने वाले मेटाबोलिक सिंड्रोम(metabolic syndrome) का एक भाग है। बहुत सरल शब्दो में कहे तो,इन्स्युलिन की संवेदनशीलता और असर, वजन बढ़ने से कम होती है और वजन कम होने से बढ़ती है।
इसलिए,बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद, वजन कम होने से, धीरे-धीरे इन्स्युलिन की संवेदनशीलता में सुधार होता है। इन्स्युलिन की असर बढ़ने से, ब्लड सुगर लेवल पर बहेतर कंट्रोल रहता है।
इसका एक और भी महत्वपूर्ण पहलू है। इन्स्युलिन की असर में वृद्धि होने से, ब्लड सुगर कंट्रोल करने के लिए, कम इन्स्युलिन की आवश्यकता रहती है।और इसलिए पेन्क्रियास पर इन्स्युलिन बनाने का बोज कम होता है। इससे बीटा सेल्स की उम्र बढ़ती है। यह लम्बी अवधि के लिए पेन्क्रियास के स्वास्थ्य तथा डायबिटिस के परिणामों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
सर्जरी के तुरंत बाद, वजन में कुछ खास कमी ना होने से भी पहले, ब्लड सुगर लेवल में सुधार होना शुरू हो जाता है। ऐसा इन्स्युलिन लेवल में सुधार और कैलोरी की मात्रा में कमी की वजह से होता है। धीरे-धीरे वजन कम होने से इन्स्युलिन की संवेदनशीलता बढ़ती है, जिससे आगे चलके डायाबिटीस में और सुधार होता है। समय के साथ, बीटा सेल्स की बढ़ोतरी होने से पेन्क्रियास के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है और डायाबिटीस तथा सुगर मेटाबोलिज़म पर स्थायी रूप से नियंत्रण बनता है।
दरअसल, ग्लायसेमिक कंट्रोल (ब्लड सुगर कंट्रोल) में सुधार ही एक मात्र संकेत है जिस पर हम ध्यान देते है और नापते है। परन्तु बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद ऐसा ही सुधार लिपिड मेटाबोलिज़म, लिवर मेटाबोलिज़म, और शरीर के अन्य हॉर्मोन सिस्टम में भी आता है। वे समय के साथ, अच्छे लिपिड प्रोफाइल के परिणाम, कोलेस्ट्रॉल लेवल का कम होना, फैटी लिवर में सुधार, तथा महिलाओ और पुरुषो में प्रजनन संबंधित हॉर्मोन्स के अच्छे नियंत्रण के रूप में देखने को मिलता है। वजन के कम होने से जोड़ो की समस्या, यूरिनरी इनकंटिनन्स(पेशाब का लिक होना), और साँस संबंधित समस्याओ में भी सुधार दिखता है।
समग्रतः यह सर्जरी से शरीर की मेटाबोलिज़म तथा हॉर्मोन सिस्टम रीसेट होती है। यह सिस्टम में डिस्टर्बन्स, रोगग्रस्त मोटापे से पीड़ित मरीजों में, अस्वस्थ जीवनशैली की वजह से लम्बे समय से होती है। और इस प्रकार एक निश्चित अस्वस्थ अवस्था हमेशा के लिए बन गई होती है, जिसके कारण कई शारीरिक समस्याए पैदा हुई होती है। स्वस्थ मेटाबोलिज़म तथा हॉर्मोन्स के संतुलन वापस लौटने से, इन मरीजों की कई शारीरिक समस्याओ के मूल कारणों में सुधार होता है। और इसलिए हमे बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद मोटापे से संबंधित सभी बीमारियों में चमत्कारिक स्वास्थ्य के फायदे दिखते हैं।
आपको यह समझने की आवश्यकता है कि कोई भी बीमारी में, न तो कोई उपचार पूरी तरह से जोखिम-रहित होता है, ना तो “प्रतीक्षा करे और देखे” की निति जोखिम-रहित होती है। आपको हमेशा जोखिम के खिलाफ लाभों का आकलन करना होगा और फिर निर्णय लेना होगा।
बेरियाट्रिक सर्जरी पेट की एक बड़ी सर्जरी हे। और किसी भी अन्य सर्जरी की तरह इसके अपने जोखिम और जटिलताएं हैं। लेकिन जब योग्य जाँच के साथ, सभी उचित गाइडलाइन्स के पालन के साथ और निपुण सर्जन के द्वारा किया जाता है, तब इन सर्जरी में अन्य बड़ी सर्जरी की तुलना में बहुत कम जटिलता और मृत्यु दर होता है। यह सर्जरी लेप्रोस्कोपिक पध्धति से की जाती है। इसलिए रिकवरी बहुत जल्दी होती है। सामान्य जीवन पर वापसी भी खूब जल्दी होती है।
जहां तक लाभ के लम्बे समय तक टिकने की बात है तो,ज्यादातर मरीजों में डायाबिटीस का समाधान होता है। आपको यह समझने की आवश्यकता है कि, एक अस्वास्थ्यकर जीवनशैली मोटापे और डायबिटीस का एक प्राथमिक कारण है। इसलिए,सर्जरी के बाद भी इसकी वजह से वजन फिर से बढ़ सकता है और ग्लूकोस मेटाबोलिज़म में फिर से डिस्टर्बन्स आ सकता है। इसलिए यदि कोई मरीज सर्जरी के बाद अपनी जीवनशैली में बदलाव करता है और फॉलो-अप के दौरान दी गई सलाहों का सख्ती से पालन करता है, तो उसे लम्बे समय के परिणामो के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है। ज्यादातर मामलों में, अस्वस्थ जीवनशैली को फिर से शुरू करने के कारण समस्याएं फिर से शुरू होती हैं।
सबसे पहले आप को सर्जरी के लाभ और हानि के बारे में समजना चाहिए। यह भी समझने की जरूरत है कि अगर आप उस श्रेणी में आते हैं जिनके लिए सर्जरी की सिफारिश की जाती है, तो आपकी सर्जरी के अपेक्षित लाभ और जोखिम क्या हैं। लाभ के बारे में आप को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए की सिर्फ दवाइयां और इंजेक्शन में कमी नहीं, परन्तु बहेतर डायाबिटीस के कंट्रोल की वजह से ऑर्गन फेल्योर को टाला जा सकता है। आपको अपने आप से ये प्राथमिक प्रश्न पूछने चाहिए।
यदि आप मेदस्वी है, और डायाबिटीस के मरीज हैं, तो आपको निश्चित रूप से सर्जरी पर विचार करना चाहिए। क्यूंकि इस से आपके डायाबिटीस में सुधार होने की पूरी संभावना है। और अगर आपको मोटापे से संबंधित अन्य बीमारियाँ भी हैं, तो सर्जरी आप के लिए और भी फायदेमंद है। वजन में कमी और मोटापे से जुड़ी अन्य बीमारियों में सुधार अतिरिक्त लाभ होगा।
यदि आप का डायाबिटीस ठीक से कंट्रोल में नहीं है, आपको इन्स्युलिन शुरू करने की सलाह दी गई है और आपको मोटापा है, तो समय आ गया है की आप सर्जरी के बारे में सोचे। सर्जरी ना सिर्फ सुगर को कंट्रोल करेगी और इन्स्युलिन की जरूरत को टालेगी, परन्तु यह पेन्क्रियास के हॉर्मोन बनाने के कार्य को भी बचा के रखेगी। अगर आप अभी तक सर्जरी के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको इन्स्युलिन इंजेक्शन शुरू करने की अपने डॉक्टर की सलाह की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह वही स्टेज है की जिसमे आप डर की वजह से सर्जरी तथा इन्स्युलिन दोनों को टालते हो, जिससे पेन्क्रियास को हमेशा के लिए हानि हो सकती है। जिससे समय के साथ, आपके डायाबिटीस का कंट्रोल और ज्यादा बिगड़ जायेगा।
इस मामले में, सर्जरी आपको दवाइयों और इन्स्युलिन से छुटकारा नहीं दिला सकती।परन्तु ब्लड सुगर लेवल का अच्छा कंट्रोल ऑर्गन फेल्योर जैसी गंभीर समस्या को रोकने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। मुझे लगता हे की ऐसे मरीजों को सर्जरी से अधिकतम लाभ होता है। भले ही सर्जरी के बाद उन्हें डायबिटीज के इलाज की जरूरत हो।
यदि आप ऐसे व्यक्ति है की जिसको सर्जरी से लाभ हो सकता है तो बहेतर है की आप बेरियाट्रिक और मेटाबोलिक सर्जन से मिले और अपनी सभी समस्याओ के बारे में चर्चा करे। आपको अपने डॉक्टर से चर्चा करनी चाहिए कि आपके मामले में संभावित परिणाम क्या हैं। आप के लिए, छोटी तथा लम्बी अवधि के क्या क्या लाभ है और क्या जोखिम है। इसके बाद ही आप अपने लिए उचित निर्णय लेने के काबिल बनोगे।